आखिर चीन भारतीय सीमा में घुसने की को कोशिश क्यों कर रहा है ?
बीते कुछ दिनों चीन के आम लोगों के द्वारा चीनी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। यह प्रदर्शन चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ देखने को मिल रहा है। जो वर्तमान समय में चीन में शासन चला रहा है। यह प्रदर्शन मुख्य तौर पर चीन के सरकार के खिलाफ “ जीरो पॉलिसी ” के खिलाफ है। इस पॉलिसी के प्रदर्शन में कई लोगों की अपनी जान गवानी पड़ी है। और यही वजह है कि आप जनता के द्वारा सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। इसी चुनौती निपटने के लिए चीन सरकार ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा है।ताकि चीन के आम नागरिकों को विश्वास जीत सके और इस घुसपैठ की वजह से आम नागरिकों को ध्यान भटकाने की कोशिश की जा सके। इसी तरह की घुसपैठ साल 2020 में देखने को मिला था। जब पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी शुरू हो रही थी। कोविड-19 महामारी की शुरुआत चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ था। तो पूरी दुनिया को ध्यान भटकाने के लिए चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश किया था। यह घुसपैठ चीन की ओर से भारत के गलबान घाटी में किया गया । इस घुसपैठ को भारतीय सेना ने पूरी तरह से नाकाम कर दिया था।
भारत - अमेरिका युद्ध अभ्यास :-
भारत -अमेरिका युद्धाभ्यास चीन के लिए घुसपैठ का कारण हो सकता है। इस युद्धाभ्यास का नाम“युद्धाभ्यास ” ही था। भारत और अमेरिका के बीच चीन की सीमा से मात्र LAC से लगभग 100 किमी दूर उत्तराखंड में किया गया था।इसका उद्देश्य शांति स्थापना और आपदा राहत कार्यों में दोनों सेनाओं के बीच आपसी मदद पहुंचाना। इस युद्धाभ्यास को लेकर चीन नाराजगी जाहिर किया था। लेकिन भारत और अमेरिका के द्वारा जो स्टेटमेंट जारी किया गया था। उसमें साफ तौर पर कहा गया था कि यह युद्ध अभ्यास भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध बनाने के लिए किया जा रहा है। इसमें चीन की कोई बयान देने की जरूरत नहीं है। कुछ जानकारों का कहना है कि यह युद्धाभ्यास चीन घुसपैठ के प्रतिक्रिया के रूप मे देखा जा सकता है।
भारत-चीन संबंध :-
यह घटना तब देखने को मिल रहा है। जब वर्तमान समय में भारत- चीन संबंध खराब देखने को मिल रहा है। कोई भी दो देशों के बीच संबंध बनाने के लिए उनके जो सुप्रीम लीडर होते हैं उन दोनों के बीच समय-समय पर बैठक का आयोजन होते रहता है। लेकिन भारत और चीन के प्रतिनिधियों के द्वारा पिछले कुछ समय में कोई भी बैठक का आयोजन नहीं किया गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बीते दिन इंडोनेशिया के बाली में जी-20 के वार्षिक शिखर सम्मेलन में देखा गया था। भारत के प्रधानमंत्री ने कई देशों के साथ अपना बैठक में अपने संबंधों को बढ़ावा देने की कोशिश की लेकिन इस पूरी बैठक के दौरान भारत - चीन के बीच कोई भी बैठक का आयोजन नहीं किया गया हालांकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच में अनौपचारिक मुलाकात जरूर हुई थी।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के संबंध के बारे में क्या बोले...?
भारत -चीनी के संबंधों को लेकर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का एक बयान पिछले दिनों काफी चर्चा मे रहा। जिसमें उन्होंने कहा था जब तक भारतीय सीमा में चीन घुसपैठ करने की कोशिश बंद नहीं कर देता है। तब तक भारत चीन के बीच कोई सुधार देखने को नहीं मिलेगा।
आखिर चीन भारतीय सीमा में अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में बार - बार घुसपैठ करने की कोशिश क्यों करता है ?
चीन भारत के अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र को लेकर इतना दिलचस्प इसलिए रहता है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र राजनीतिक लिया से पूरा महत्वपूर्ण माना जाता है। अरुणाचल प्रदेश की बात की जाए तो यह पूर्वोत्तर राज्य का एक सबसे बड़ा राज्य माना जाता है। जो वर्तमान समय में तीन देशों के साथ तिब्बत, मयंमार,भूटान के साथ सीमा साझा करता है। भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हिमाचल प्रदेश पूर्वोत्तर राज्य का सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। लेकिन चीन भी इस पूरे क्षेत्र को महत्व दे रहा है। चीन का मानना है कि दक्षिणा अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है । इसलिए चीन इस पूरे क्षेत्र को अपना दावा करते रहा है।
“तवांग ” चीन के लिए क्यों महत्वपूर्ण :-?
चीन हमेशा से ही तवांग क्षेत्रों पर ध्यान देते रहा। क्योंकि यह तवांग क्षेत्र ना केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि तवांग क्षेत्र दो देशों के बीच सीमा साझा करता है पहला भूटान और दूसरा चीन तवांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि तिब्बत में जो बौद्ध धर्म को अपनाया जाता है। बौद्ध धर्म से संबंधित मठ है।यह तिब्बत के अलावा तवांग क्षेत्र में भी मौजूद है। इसके अलावा 1959 में दलाई लामा जब भारत आए थे।तो वह तवांग के क्षेत्रीय से ही भारत आए थे। क्योंकि चीन का यह मानना है कि तिब्बत में कोई आंदोलन शुरू होता है तो वह तवांग में भी देखने को मिल सकता है। क्योंकि तवांग और तिब्बत के रहन-सहन दोनों एक समान मिलता-जुलता है। क्योंकि तिब्बत को लेकर कोई भी आंदोलन इस क्षेत्र में शुरू नहीं किया जा सके इसलिए चीन इस क्षेत्र को ज्यादा महत्व मानता है।
भारत-चीन सीमा विवाद :-
वर्तमान समय में भारत-चीन तकरीबन 3488km की सीमा साझा करता है। और यह सीमा स्पष्ट रूप से सीमा नहीं है। यानी कौन सा सीमा भारत के पास आता है और कौन सा चीन के जाता है।
हम जानते हैं कि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण सीमा (Line of Actual Control (LAC) इसको लेकर भारत और चीन अलग-अलग व्यान देते रहा है। इसको लेकर भारत अलग ही व्याख्या करता है। और चीनी से अलग तरह से व्याख्या करता करता है।
LAC को लेकर भारत का दावा :-
पहले तो यह जान लीजिए कि भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है।भारत का दावा हमेशा से यही रहा है कि साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ। तो उस आजादी के समय जो क्षेत्र ब्रिटिश भारत के अधीन था। उस पूरे क्षेत्र को भारत के अधीन माना जाना चाहिए।
भारत -चीन सीमा को समझने के लिए 3 सेक्टर में विभाजित कर सकते हैं ।
1.पश्चिमी सेक्टर ( अक्साई चीन या लद्दाख का हिस्सा )
पश्चिम सेक्टर को विवाद मुख्य तौर पर जॉनसन लाइन को लेकर है। इसको साल 1960 में निर्धारित किया गया था। यह लाइन लद्दाख और चीन के सीमा का निर्धारण करती है। और इस जॉनसन लाइन की वजह से जो अक्साई चीन का सीमा है। इसे भारत की सीमा के तौर पर निर्धारण किया गया है। लेकिन चीन इस जॉनसन लाइन को मान्यता नहीं देता है। इसी दावे के हिस्से के तौर पर 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध देखने को मिला था। युद्ध के तौर पर चीन ने अक्साई चीन पर अवैध तौर पर कब्जा कर लिया था। वर्तमान समय में अक्साई चीन पर चीन का कब्जा है।
2.मध्य सेक्टर ( हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिस्से)
मध्य सेक्टर में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के क्षेत्र को शामिल किया जाता है। इस क्षेत्र को लेकर भारत-चीन में कोई खास विवाद नहीं है। इस क्षेत्र के विवाद को दोनों देशों के बैठक के द्वारा सुलझा लिया गया था।
पूर्वी सेक्टर में दो क्षेत्र सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश आते हैं। सिक्किम 16 मई 1975 को भारत का हिस्सा बना था। 1975 के बाद भारत और चीन के बीच कोई खास विवाद देखने को नहीं मिला है। 2003 में चीन ने सिक्किम भारत के राज्य के तौर पर मान्यता दे दिया था।
लेकिन इस पूरे क्षेत्र मे बड़ा अरुणाचल प्रदेश को लेकर रहा है। विवाद की शुरुआत साल 1914 में शुरू हुई थी। जब ब्रिटिश भारत,तिब्बत चीन गणराज्य,के प्रतिनिधियों के बीच एक बैठक आयोजित की जाती है। इस बैठक का मुख्य विषय यह था कि तीनों इकाइयों के बीच सीमा का निर्धारण करना था। इस पूरी बैठक के दौरान एक समझौते पर हस्ताक्षर करना था। इस समझौते में तिब्बत को स्वायत्तता दिए जाने का प्रावधान शामिल होगा। लेकिन चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। लेकिन इसके बावजूद भी भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच या समझौता हुआ और इसी समझौते के हिस्से के तौर पर मैकमोहन रेखा खींचा गया।
मैकमोहन रेखा कहां है ?
मैकमोहन रेखा भारत और चीन के सीमा पर खींचा गया है। यह पूरी रेखा भारत के पूर्वी सेक्टर में भारत- तिब्बत सीमा का निर्धारण करता है। क्या मैक मोहन रेखा भारत के अरुणाचल प्रदेश के हिस्से को मान्यता देता है और यही वजह है कि यह जो पूरा विवाद है इतना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है। और चीन को कहना है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र चीन का हिस्सा है।लेकिन हम सब सभी जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न अंग है और भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
source :👉Indian Express Explained section
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